
फर्जी डीड के खबर का ऐसा असर हुआ कि मिश्रा ने सरायकेला सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय जाकर स्वयं ट्रस्ट डीड रद्द करने की गुहार लगायी और तमाम औपचारिकताओं को पूरा किया। आज शाम रजिस्ट्रार ने कैंसिलेशन डीड संख्या 89/2025, वॉल्यूम 4 द्वारा ट्रस्ट डीड को विधिवत् रद्द भी कर दिया। पीछे छूट गया मिश्रा की काण्ड्रा नरेश बनने की तमाम हसरतें और आगे रह गया प्रशासन का चाबुक जो उसे हांक कर सरायकेला जेल की चाहरदिवारी तक ले जाएगा! अनुदान पर चलने वाले प्राइवेट स्कूलों पर सरकार की निगाह बानी की अपाहिज नीति के कारण बच्चों की बदहाल स्कूली शिक्षा का शिकार हो चुका था काण्ड्रा का हरिश्चन्द्र विद्या मंदिर। विवश मां-बाप के मासूम बच्चों को फ्री यूनिफॉर्म, फ्री किताबें, फ्री बस सेवा, फ्री फीस के साथ बेहतरीन शिक्षा मुहैया कराने की कई दिनों तक ढ़िढोरा पीटवा कर देवदूत का लबादा ओढ़े मिश्रा ने हरिश्चन्द्र विद्या मंदिर में ट्रस्ट के डायरेक्टर के रुप में दो पिस्टल धारी बॉडीगार्ड के साथ स्कूल में इंट्री मार ली थी।
थोड़ा पीछे चलते हैं, काण्ड्रा की सीमा से सटे डुमरा पंचायत में मिश्रा ने स्थानीय रैयतदारों से कई एकड़ जमीन का शर्तों के साथ सौदा किया है। डुमरा आने जाने के क्रम में काण्ड्रा के प्राइम लोकेशन में एचसीवीएम स्कूल के चारों ओर करीब तीन एकड़ की वेशकीमती परती जमीन, मिश्रा की मक्कार आंखों को लुभाती रहती थी। जमीन पर कब्जा के लिए साजिश रचा जाने लगा। साथ ही कई ‘जयचंद’ जुड़ते गए, कारवां बनते चला गया। जीवनकाल के अंतिम वर्षों के काउंट डाउन गिन रहे शिक्षकों को अपने शेषकाल का भविष्य सुरक्षित लगने लगा और पढ़ रहे बच्चों के अभिभावकों की उम्मीद की बैशाखी के सहारे तथाकथित ट्रस्टी ने फर्जी ट्रस्ट के दम पर एचसीवीएम जैकपॉट पर दांव लगा दिया। युद्ध स्तर पर विद्यालय के जीर्णोद्धार के साथ साथ स्थानीय लोगों, राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों को साधने लगे। लेकिन फर्जी एनओसी से बनाये गए ट्रस्ट डीड के खुलासे ने उसके चक्रव्यूह को बिखेर दिया।
तथाकथित ट्रस्टी का गेम प्लान उसके ट्रस्ट डीड में ही सजाया जा चुका था। ट्रस्ट बोर्ड में डायरेक्टर सहित कुल 9 सदस्य रखे गए थे। उसकी पत्नी, दो भतीजा, एक निकट सम्बंधी और उसके अन्य चार शागिर्द बोर्ड मेम्बर थे। किसी भी बिल को पास कराने के लिए 5 सदस्यों की जरुरत होती, जो उसके परिवार के ही होते। स्कूल की जमीन का कॉमर्शियल कन्वर्जन, बैंक लोन, टेक्स चोरी, काला धन को सफेद करने की तमाम रास्ते खुले होते। किसी से पूछने की जरुरत नहीं होती, कोई रोक-टोक कर नहीं पाता। लेकिन अब सारे रास्ते बंद हो गए सिर्फ जेल जाने का रास्ता खुला है।
काश, मिश्रा जी ने रामचरितमानस की ये पंक्तियां पढ़ ली होती
‘जहां सुमति तहं संपति नाना, जहां कुमति तहं विपति निदाना’