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मनुष्य के जीवन में मित्रता की अहम भूमिका – हिमांशु महाराज

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जमशेदपुर। बिष्टुपुर सत्यनारायण मारवाड़ी मंदिर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के मंगल अवसर पर सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का हवन यज्ञ में पूर्णाहुति के साथ मंगलवार को कथा का विश्राम हो गया। उपस्थित सैकड़ों भक्तों द्वारा भागवत कथा के विश्राम पर हवन यज्ञ में पूर्णाहुति दी गई। हवन एवं पुर्णाहुति के बाद लगभग एक हजार से अधिक भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया। इससे पहले कथा वाचक हिमांशु महाराज ने धर्म, सत्य और कलयुग की महिमा का वर्णन समेत कृष्ण और सुदामा की मित्रता की महिमा का गुणगान करते हुए कहा कि जहां मित्रता होती है वहां मतलब नहीं होता। आज के मनुष्य को कृष्ण और सुदामा से सीखना चाहिए कि मनुष्य के जीवन में मित्रता की कितनी अहम भूमिका रहती है। कथा वाचक ने आगे कहा कि सुदामा ने भगवान कृष्ण के हिस्से के चने खा लिया। उस कारण सुदामा को दरिद्रता का सामना करना पड़ा। पत्नी के बार-बार कहने पर सुदामा एक पोटली में चावल लेकर द्वारिका की और चल दिये। द्वारिका में कृष्ण और सुदामा की भेंट हुई। कृष्ण ने उस पोटली में से दो मुठ्ठी चावल खाये तो सुदामा को दो लोक दे दिये।

सुदामा दो लोकों के राजा हो गये। आज कलयुग में मित्र-मित्र को ही धोखा दे जाते हैं। महाराज ने बताया कि कलयुग में केवल भगवान का नाम ही सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाला है, क्योंकि कलयुग में ऐसे राजा राज्य करेंगे जिनका न कोई धर्म होगा और न ही वे सत्य की राह पर चलेंगे। भगवान ने उद्धव को 24 गुरूओं की कथा सुनाकर और यह कहकर कि आज से तीसरे दिन यह द्वारका समुद्र में डुब जायेगी। भगवान स्वधाम को चले गये। कृष्ण के जाते ही इस पृथ्वी पर कलयुग आ गया। अंत में भगवान का अंतिम श्लोक का दर्शन कराया गया। इनका रहा योगदानः- सातों दिन कथा को सफल बनाने में सचिव सुरेश कुमार अगीवाल, कुंजबिहारी नागेलिया, संतोष संघी, अशोक नरेड़ी, अशोक संघी, संत कुमार आगीवाल, विजय कुमार आगीवाल, हरि शंकर सांेथालिया, बाबूलाल सोंथालिया, बजरंग लाल सोंथालिया, मुरारी लाल सोंथालिया, बनवारी लाल सोंथालिया, सत्यनारायण नरेड़ी, विश्वनाथ नरेड़ी, कमल अगीवाल, नरेश नरेड़ी, महावीर नागेलिया आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

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