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भगवान कृष्ण माखन चोर नहीं भक्तों के कष्ट को हरने वाले हैं इसलिए कहा जाता है उन्हें हरि

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भगवान कृष्ण सूक्ष्म रूप से सृष्टि के केंद्र बिंदु से पूरे सृष्टि को चला रहे हैं

जमशेदपुर:
आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से घूम-घूम कर लगभग पांच स्थानों पर भगवान कृष्ण के वास्तविक रूप को बताया गया।
भगवान कृष्ण माखन चोर नहीं कृष्ण दुख की चोरी करते हैं अपने भक्तों के दुख को बिना बोले चुरा लेते हैं इसलिए उन्हें हरि कहा जाता है ।हरि का मतलब हुआ बिना बोले कुछ ले लेना इसलिए वह अपने भक्तों का दुख बिना बोले ही हर लेते हैं इसलिए उन्हें हरि कहा जाता है। सृष्टि के केंद्र बिंदु से सूक्ष्म रूप से सबको अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं इसलिए उन्हें कृष्ण कहा जाता है।कृष्ण का मतलब होता है जो अपनी ओर आकर्षित करें। मनुष्य के शरीर में (उच्चतम चक्र )सहस्त्रार चक्र पर विराजमान होकर मनुष्य के जीव भाव को अपनी ओर खींच रहे हैं वही है कृष्ण।
मन के संकुचित अवस्था में आत्मा का विस्तार संभव नहीं है। यदि इस संकुचित अवस्था को हटा दिया जाए, दूर कर दिया जाए ,तो मन में स्वर्ग की स्थापना हो जाती है। इसलिए सुनील आनंद ने कहा कि विस्तारित हृदय ही वैकुंठ है ।जहां मन में कोई कुंठा नहीं है,कोई संकीर्णता नहीहै, उसे ही स्वर्ग कहते हैं । भक्त कहता है कि मैं हूं और मेरे परम पुरुष हैं दोनों के बीच में कोई और तीसरी सत्ता नहीं है ।मैं किसी तीसरे सत्ता को मानता ही नहीं हूं।इस भाव में मनुष्य प्रतिष्ठित होता है तो उसी को कहेंगे ईश्वर प्रेम में प्रतिष्ठा, भगवत्प्रेम में प्रतिष्ठा हो गई ।यही है भक्ति की चरम अवस्था। चरम अवस्था में भक्त के मन से जितने भी ईर्ष्या, द्वेष, घृणा , भय, लज्जा , शर्म ,मान मर्यादा, यश -अपयश इत्यादि के भाव समाप्त हो जाते हैं। उनका मन सरल रेखा कार हो जाता है और उनमें ईश्वर के प्रति भक्ति का जागरण हो जाता है। धूल देने के लिए तैयार हो गए । पापी बनने और नरक में जाने की बात जब नारद ने उन्हें कहा तो भक्त गोपीजन ने इसकी परवाह न करते हुए अपने पैरों की धूल ही दे दी ।तुम्हें जाने की बात जब नारद ने उन्हें कहा तो भक्त गोपीजन ने इसकी परवाह नहीं करते हुए अपने पैरों की धूल दे ही दी । उनका तर्क यह था कि यदि हमारे आराध्य इससे ठीक हो जाएंगे तो इससे बड़ी खुशी की बात हमारे लिए क्या हो सकती है।

उन्होंने कहा कि जहां भक्त हृदय में कोई संकीर्णता नहीं है, कुंठा से रहित है, वही वास्तव में बैकुंठ है। इसे ही आंतरिक बैकुंठ कहते हैं।

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